कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन के खिलाफ अच्छी खबर आई है। नई रिसर्च में पता चला है कि फाइजर की कोरोना वैक्सीन ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में मिले कोरोना के नए वैरिएंट्स पर भी कारगर है। यानी यह वैक्सीन इन नए वैरिएंट्स को रोकने में भी कारगर है।
इन वैरिएंट्स की वजह से दुनियाभर में चिंता थी। दोनों ही वैरिएंट्स में एक कॉमन म्युटेशन था, जिसे N501Y नाम दिया गया था। यह बदलाव स्पाइक प्रोटीन में उस जगह पर हुआ था, जो शरीर में जाकर वायरस को ढंकता है। इस बदलाव की वजह से ही इंफेक्शन तेजी से बढ़ रहा है। ब्रिटेन में नए सामने आने वाले ज्यादातर केस नए स्ट्रेन की वजह से थे। इससे पहले ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने यह डर जताया था कि हो सकता है कि दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन पर वैक्सीन फेल हो जाए। इस वजह से नए स्ट्रेन को आइसोलेट कर उस पर वैक्सीन के ट्रायल करने की प्रक्रिया भी तेज हो गई थी।
दरअसल, वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति शरीर में जाता है, तो उसमें थोड़ा-बहुत बदलाव हो जाता है। वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस ने इन बदलावों को ट्रैक किया है और यह पता लगाने की कोशिश की है कि एक साल पहले चीन में ट्रेस होने के बाद से वायरस में कितने और किस तरह के बदलाव हुए हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिकों का दावा है कि यूके में मिले नए स्ट्रेन की वजह से कोरोना इंफेक्शन की संख्या तेजी से बढ़ी है। ब्रिटेन में सामने आए ज्यादातर नए केस इसी स्ट्रेन के हैं।
कैसे हुई नई स्टडी?
फाइजर ने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के मेडिकल ब्रांच के रिसर्चर्स के साथ मिलकर टीम बनाई थी। इस टीम को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे इस बात की जांच करें कि वायरस में बदलाव की वजह से वैक्सीन की इफेक्टिवनेस प्रभावित हुई है या नहीं?
स्टडी के दौरान 20 ऐसे लोगों से ब्लड सैम्पल लिए, जिन्हें फाइजर की वैक्सीन लगाई गई थी। इन लोगों के शरीर में जो एंटीबॉडी बनी है, उसका इस्तेमाल करते हुए लैबोरेटरी में वायरस के नए स्ट्रेन के खिलाफ वैक्सीन की इफेक्टिवनेस की जांच की गई। इसमें इस बात की पुष्टि हुई है कि वैक्सीन इन स्ट्रेन पर भी कारगर है।
यह स्टडी रिसर्चर्स की एक ऑनलाइन साइट पर पोस्ट हुई है। फिलहाल यह स्टडी प्राथमिक है। विशेषज्ञों ने इसकी समीक्षा नहीं की है। मेडिकल रिसर्च में यह एक अहम पहलू माना जाता है। इस वजह से स्टडी पर सवाल भी उठ सकते हैं।
फाइजर ने क्या कहा?
फाइजर चीफ साइंटिफिक ऑफिसर डॉ. फिलिप डॉर्मिट्जर के मुताबिक, इस स्टडी के नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले हैं। जिस म्युटेशन की वजह से वैज्ञानिक बिरादरी में चिंता थी, उसे इस स्टडी ने कुछ हद तक दूर कर दिया है। पीयर-रिव्यू में इसकी पुष्टि भी हो जाएगी।