आज हम उस शख्स के बारे मैं जानेंगे जो , गांधी और नेहरू के बाद आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचारधारा को सबसे अधिक प्रभावित किया है , और जानेंगे कि इंदिरा गांधी और जेपी के रिश्ते मैं इतनी कड़वाहट आखिर आई क्यों।
1974 के आते-आते पूरे भारत का माहौल इंदिरा गांधी के खिलाफ और जे पी ( जय प्रकाश नारायण ) के पक्ष में हो गया था । जे पी को देश के उद्धारक के रूप में देखा जाने लगा था ।उनका " संपूर्ण क्रांति " का नारा आम जनता को आकर्षित करने लगा था । बल्कि उनके दलविहीन प्रजातंत्र की अवधारणा को भी गंभीरता से लिया जाने लगा था। कांग्रेस के बीच से भी ये मांग उठने लगी थी कि जे पी से टकराने के बजाय उन को साथ लेकर चलने की कोशिश की जाए।
लोगों के दबाव के चलते इंदिरा गांधी अनिच्छा पूर्वक जे पी से मिलने को तैयार हो गई। जाने, माने पत्रकार और जेपी आंदोलन में भाग लेने वाले रामबहादुर राय बताते हैं कि जे पी का कहना था कि बिहार विधानसभा को भंग करने की मांग उचित है। उस पर आप को विचार करना चाहिए। अंत में जब बात करीब करीब खतम हो गई थी । तब इंदिरा ने सिर्फ एक वाक्य कहा, आप कुछ देश के बारे में भी सोचिए , यह बात जे पी के मन में मर्म पर चोट करने वाली थी। इसके बाद जेपी ने कहा था इंदु मैने देश के अलावा और सोचा ही क्या है । इसके बाद जेपी से जो भी मिला उससे उन्होंने बताया कि इंदिरा ने उनका अपमान किया है। इसके बाद जेपी ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि इंदिरा से अब हमारा सामना चुनाव के मैदान में होगा ।
इस तीखी बहस के बाद जे पी ने इंद्रा गांधी से एक मिनट अकेले में बात करने की इच्छा प्रकट की ।
इंदर मल्होत्रा इंदिरा गांधी की जीवनी "इंदिरा गांधी ए पर्सनल एंड पॉलीटिकल बायोग्राफी " में लिखते हैं जब जगजीवन राम दूसरे कमरे में चले गए तो जेपी ने इंदिरा को पीले पड़ चुके कागजों का पुलिंदा पकड़ाया। इसमें इन्द्रा की माता कमला नेहरू द्वारा 20 और 30 के दशक में जेपी की पत्नी प्रभावती को लिखे गए पत्र थे जिन्हें प्रभावती ने बहुत सहेज कर रखा था । इन पत्रों में कमला ने नेहरू खानदान की महिलाओं द्वारा उनके साथ बुरा सलूक किए जाने का खुलकर जिक्र किया था। जेपी ने बताया कि पिछले वर्ष उनकी पत्नी के देहांत के बाद उन्हें यह पत्र उनके कागजों में मिले थे।
इन पत्रों को देखकर इंदिरा गांधी थोड़ी देर के लिए भावुक जरूर हुई, लेकिन तब तक उन दोनों के बीच बहुत दूरी बढ़ चुकी थी । इंदिरा गांधी के सचिव रहे पीएम धर अपनी किताब "इंदिरा गांधी एमरजैंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी " में लिखते हैं हमारे और जे पी के बीच मध्यस्थता कर रहे गांधी पीस फाउंडेशन के सुगध दासगुप्ता ने मुझसे कहा था नीतिगत मामलों का इतना महत्व नहीं है। मेरी सलाह यह है कि आप जे पी को कुछ मान दिजिए बकौल राधा कृष्ण और दास गुप्ता यह उम्मीद कर रहे थे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी उनसे उसी तरह के संबंध स्थापित करेंगी ,जैसे नेहरू और गांधी के बीच हुआ करते थे । इंदिरा गांधी जे पी की एक इंसान के तौर पर कदर जरूर करती थी ,लेकिन वह उनके विचारों से शुरू से ही सहमत नहीं थी ।
उनके नजर में वह एक ऐसे सिद्धांत वादी थे जो व्यावहारिक चीजों को अधिक महत्व देते थे एक दूसरे के बारे में ऐसे विचार रखने के बाद इन दोनों के बीच सामान राजनीतिक की समझ पैदा होना लगभग असंभव था । नियति के पास उन दोनों के बीच टकराव होने देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
जेपी और इंदिरा के बीच कटुता इतनी बड़ी गई कि इंदिरा ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी।
इससे पहले जेपी ने दिल्ली के रामलीला के मैदान में एक बड़ी रैली को संबोधित किया । मशहूर पत्रकार कुबी कपूर अपनी किताब "द एमरजेंसी ए पर्सनल हिस्ट्री " में लिखती है ।
भीड़ को दूर रखने के लिए ,उस समय के तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने दूरदर्शन से कहकर रविवार की फीचर फिल्म का समय 4:00 बजे से बदलवा कर 5:00 बजे करवा दिया था। पूर्व निर्धारित फिल्म वक्त के स्थान पर उन्होंने 1973 की सबसे बड़ी फिल्म ब्लॉकबस्टर मूवी बॉबी दिखाने का फैसला किया था। एक बार फिर रामलीला मैदान के आसपास किसी बस को आने नहीं दिया गया था और लोगों को सभा स्थल तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर तक चलना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेई की दत्तक पुत्री नमीता भट्टाचार्य ने बताया था कि जब वह सभा स्थल की तरफ जा रही थी, तो उन्हें एक दबी सी आवाज सुनाई थी। तो उनहोंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा, यह किसकी आवाज़ है, टैक्सी ड्राइवर जवाब दिया था यह लोगों के कदमों की आवाज है ।जब हम तिलक मार्ग पहुंचे लोगों से खचाखच भरा हुआ था फिर वहां पर हमें टैक्सी छोड़नी पड़ी और वहां से रामलीला मैदान हम पैदल ही चल पड़े ।
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25 जून 1975 को दिन .1:30 बजे के समय गांधी पीस फाउंडेशन के सचिव राधा कृष्ण के बेटे चंद्रहर खुले आसमान के नीचे सो रहे थे। अचानक चंद्रहर अंदर आए और अपने पिता को जगाते हुए अपनी दबी हुई आवाज से कहा कि पुलिस यहां गिरफ्तारी का वारंट लेकर आइ है। राधा कृष्ण बाहर आए , पुलिस ने उन्हें जे पी के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट दिखाया। राधा कृष्ण पुलिस वालों से कहा कि क्या आप कुछ समय इंतजार कर सकते हैं। जे पी बहुत देर से सोए हैं वैसे भी उन्हें तीन - चार बजे तो उठ ही जाना है क्योंकि उन्हें सुबह तड़के ही पटना की फ्लाइट पकड़नी है। पुलिस वाले इंतजार करने के लिए मान गए । राधा कृष्ण चुपचाप नहीं बैठे। उन्होंने अपनी टेलिफोन ऑपरेटर को निर्देश दिया कि जिस जिस को फोन लगा सकती हैं उन्हें फोन करके जे पी की गिरफ्तारी की सूचना दे ।
चलते समय राधा कृष्ण जे पी से कहा, क्या आप लोगों के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे जे पी ने आधे सेकेंड के लिए सोचा और राधा कृष्ण की आंखों में सीधे देखते हुए कहा
"विनाश काले विपरीत बुद्धि "
जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने चुनाव करवाने का फैसला किया इस चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई और इंदिरा गांधी खुद अपनी सीट हार गई । मार्च 1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद सरकार बनने की कवायद चल ही रही थी कि इंदिरा को इस बात की आशंका हो गई कि संजय गांधी के जबरन नसबंदी कार्यक्रम से प्रभावित लोग संजय गांधी को जबरदस्ती पकड़कर तुर्कमान गेट ले जाएंगे और उनकी सार्वजनिक रूप से नसबंदी करेंगे। जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी , योजना आयोग के सदस्य और दक्षिण अफ्रीका में भारत के उच्चायुक्त बने लक्ष्मीचंद जैन अपनी आत्मकथा "सिविल डिसऑबेडिएंस टू फ्रीडम स्ट्रगल लाइफ "में लिखते हैं।
यह बात सुनकर जे पी बहुत परेशान हो गए। उन्होंने तय किया कि वह इंदिरा गांधी से मिलने उनके निवास स्थान पर जाएंगे और उसके बाद जेपी इंदिरा के पास गए और उन्होंने उनके साथ चाय पी और उनसे बातें की। उनके मिलने के बाद जेपी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि इंदिरा गांधी का राजनीतिक जीवन अभी समाप्त नहीं हुआ है।
उस समय जे पी और इंदिरा गाँधी के बीच हुई कुछ बातें ?
जे पी ने इंदिरा गांधी से मिलकर इंदिरा गांधी से यह पूछा कि प्रधानमंत्री ना रहने पर तुम्हारा खर्चा कैसे चलेगा तो इंदिरा गांधी ने उनको यह बताया कि हमें जो जवाहरलाल नेहरू की पुस्तकों की रॉयल्टी से आने बाली आय और अपने कुछ आमदनी के जरिए बताए ।
उन्होंने इंदिरा को आश्वस्त भी किया कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और उन्होंने चौधरी चरण सिंह से मुरार जी देसाई से व्यक्तिगत तौर पर अपील की और उन्होंने एक बयान भी दिया।
कुछ ही दिनों में जेपी का जनता पार्टी से भी मोह भंग हो गया। पटना में बीमार पड़े थे और जनता पार्टी के नेताओं ने उनकी कोई खबर नहीं ली। इंदिरा गांधी ने इसके ठीक उल्टा किया वह पटना में रुकी और जे पी से मिलने गई । इस मुलाकात के बाद जे पी ने इंदिरा को आशीर्वाद देते हुए कहा था "तुम्हारा भविष्य तुम्हारे भूतकाल से ज्यादा चमकदार होगा " । जे पी को नजदीक से जानने वाले रजी अहमद का कहना है कि जे पी की आखिरी दिनों में दोनों के रिश्ते फिर ठीक हो गए थे ।
हालांकि राजनीतिक सलाहकारों का मानना है कि इंदिरा गांधी की जे पी से मुलाकात उनकी राजनीति का हिस्सा थी और वो उसमे पूरी तरह से सफल भी रही।